BJP के लिए फायदे में क्यों नहीं बदला ‘नया कश्मीर’, एग्जिट पोल में कैसे बिखरे सपने ?

Jammu And Kashmir Exit Poll: जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव के एग्जिट पोल में भाजपा के 'नया कश्मीर' के सपने में क्या गड़बड़ हुई, जबकि इंडिया गटबंधन के पक्ष में जमकर मतदान हुए? आठ अक्टूबर को आने वाले चुनाव परिणाम से पहले यह सवाल राजनीतिक जगत में चर्चा

4 1 8
Read Time5 Minute, 17 Second

Jammu And Kashmir Exit Poll: जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव के एग्जिट पोल में भाजपा के 'नया कश्मीर' के सपने में क्या गड़बड़ हुई, जबकि इंडिया गटबंधन के पक्ष में जमकर मतदान हुए? आठ अक्टूबर को आने वाले चुनाव परिणाम से पहले यह सवाल राजनीतिक जगत में चर्चा का मुद्दा बना है. आइए, जानते हैं कि एग्जिट पोल में भाजपा के ‘नया कश्मीर’ के सपने में क्या गड़बड़ हुई? ये नारा भाजपा के लिए चुनावी फायदे में क्यों नहीं बदल पाया

जम्मू कश्मीर एग्जिट पोल में किन वजहों से बिखरे भाजपा के सपने?

सीवोटर एग्जिट पोल ने जम्मू-कश्मीर में त्रिशंकु विधानसभा का अनुमान लगाया है. इसमें नेशनल कॉन्फ्रेंस-कांग्रेस गठबंधन को 95 सदस्यीय सदन में 40 से 48 सीटें मिलने की उम्मीद है. नए परिसीमन के बाद केंद्र शासित प्रदेश में 90 विधायक चुने जाते हैं, जबकि पांच उपराज्यपाल द्वारा मनोनीत किए जाते हैं. घाटी की 47 सीटों पर भाजपा का कुल प्रदर्शन खराब रहने की उम्मीद है. साल 2014 के चुनाव में भी घाटी में वह कोई सीट हासिल करने में नाकाम रही थी, हालांकि इस बार वह आखिरकार अपना खाता खोल सकती है.

घाटी में नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस गठबंधन के लिए अच्छी खबर

इस बीच, इंडिया टुडे द्वारा दिखाए गए सीवोटर एग्जिट पोल के मुताबिक, भाजपा के जम्मू में अपना गढ़ बनाए रखने की संभावना है, जहां उसे कुल 43 में से 27-31 सीटें मिलने की संभावना है. तमाम एग्जिट पोल के भाजपा के सपनों को झटका देने वाले ये आंकड़े फारूक अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस गठबंधन के लिए अच्छी खबर लेकर आई हैं. वहीं, कई नई पार्टियों के भी ठीकठाक चुनावी प्रदर्शन के आसार हैं.

भाजपा के लिए वोटों में तब्दील नहीं हुआ 'नया कश्मीर' का वादा

पिछले पांच सालों में केंद्र सरकार ने शांति, विकास और समृद्धि पर ध्यान केंद्रित करते हुए इस क्षेत्र को 'नया कश्मीर' बनाने का वादा किया था, लेकिन 'बदलाव' भगवा पार्टी के लिए वोटों में तब्दील नहीं हुआ. इससे सवाल उठता है कि 'नया कश्मीर' का यह विजन भाजपा के लिए चुनावी लाभ में क्यों नहीं बदल पाया, जिसने घाटी में अपनी उपस्थिति बढ़ाने और अपने कैडर को मजबूत करने के लिए कड़ी मेहनत की है. साथ ही भाजपा ने सैयद अल्ताफ बुखारी की अपनी पार्टी और सज्जाद लोन की पीपुल्स कॉन्फ्रेंस जैसी पार्टियों के साथ गठबंधन भी किया है.

घाटी में कमल के खिलने में बाधा डालने वाले मुख्य फैक्टर्स क्या हैं?

जम्मू-कश्मीर में अपना पहला मुख्यमंत्री पाने की भाजपा की महत्वाकांक्षाओं के लिए कश्मीर घाटी में मजबूत प्रदर्शन महत्वपूर्ण था. हालांकि, ऐसा लगता है कि इस क्षेत्र में उनके लिए कुछ भी कारगर नहीं हुआ. इसके पहले संकेत लोकसभा चुनावों के दौरान स्पष्ट हुए थे, जब भाजपा घाटी के तीनों संसदीय क्षेत्रों में से किसी पर भी चुनाव लड़ने में नाकाम रही थी. कई लोगों के लिए, इसे आर्टिकल 370 के निरस्त होने के बाद कश्मीर में अपने मिशन को हासिल करने में पार्टी की कमजोरी की मंजूरी के रूप में देखा गया. आखिर, कश्मीर घाटी में कमल के खिलने में बाधा डालने वाले मुख्य फैक्टर्स क्या हैं?

'आर्टिकल 370 एक अभिशाप था, सम्मान नहीं' समझाने में नाकामी

भाजपा नेतृत्व जम्मू कश्मीर के लोगों को यह समझाने में कमोबेश नाकाम रहा कि उनके लिए आर्टिकल 370 एक अभिशाप था, न कि सम्मान का मामला. केंद्र सरकार ने अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया, जम्मू और कश्मीर से उसका विशेष दर्जा छीन लिया और उसे केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया. इस क्षेत्र में कई महीनों तक अभूतपूर्व प्रतिबंध लगा दिए गए.

जैसे-जैसे स्थिति सामान्य होने लगी, पीएम नरेंद्र मोदी की सरकार ने विकास, नौकरियों और सुरक्षा के वादों के साथ ‘नया कश्मीर’ बनाने का अपना विजन पेश किया. हालांकि, अपने विशेष दर्जे को हटाए जाने पर कश्मीर के लोगों द्वारा महसूस किए गए नुकसान की भावना को दूर करने के लिए बहुत कम काम किया गया.

इस बीच, नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) और महबूबा मुफ़्ती की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) जैसी क्षेत्रीय पार्टियों ने 'गरिमा' और 'अस्मिता' वगैरह इमोशनल फैक्टर्स का लाभ उठाते हुए इस कदम को कश्मीर विरोधी बताया और भाजपा को भी कश्मीरी विरोधी की तरह पेश किया. मुस्लिम बहुल घाटी के लोगों में यह भावना भाजपा के शांति और विकास के प्रयासों के बावजूद भी जिंदा रही है.

केंद्र के अलगाववाद विरोधी कठोर कदमों का भी नतीजा

भाजपा की 'नया कश्मीर' सुरक्षा रणनीति में सामूहिक जिम्मेदारी और कठोर दंड की नीति शामिल थी. इसके कारण जनता में असंतोष पैदा हुआ. आतंकवाद, अलगाववाद और पत्थरबाजी के खिलाफ सख्त कार्रवाई का स्वागत किया गया, लेकिन कई स्थानीय लोगों ने महसूस किया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को दबाया जा रहा है. विपक्ष ने व्यापक तौर पर नैरेटिव बनाई गई कि असहमति को रोकने के लिए डर का इस्तेमाल किया जा रहा है. इसने घाटी में भाजपा की चुनावी बढ़त हासिल करने की क्षमता को सीमित कर दिया है.

नौकरियों और निवेश पर वादों और कार्रवाई के बीच अंतर

जम्मू और कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के बाद, भाजपा ने विकास परियोजनाओं की एक लहर का वादा किया था. इसमें बड़े पैमाने पर निवेश के माध्यम से रोजगार सृजन शामिल है, जिसका लक्ष्य क्षेत्र के बड़ी संख्या में शिक्षित लेकिन बेरोजगार युवाओं को लक्षित करना है. हालांकि, इन महत्वपूर्ण मुद्दों पर उल्लेखनीय प्रगति न होने से लोगों में निराशा और राजनीतिक विश्वासघात की भावना पैदा हुई है.

ये भी पढ़ें - Poll of Polls: हरियाणा में कांग्रेस की सुनामी, जम्मू-कश्मीर में त्रिशंकु विधानसभा! क्या कहते हैं एग्जिट पोल्स?

कश्मीर में नाकाम रहे भाजपा के कई स्थानीय सहयोगी दल

अपनी चुनावी रणनीति के तहत, भाजपा ने एनसी और पीडीपी के पारंपरिक प्रभुत्व से आगे बढ़कर अपनी पार्टी और पीपुल्स कॉन्फ्रेंस जैसी नई स्थानीय पार्टियों के साथ गठबंधन करने की कोशिश की. हालांकि, इन गठबंधनों में वर्षों के निवेश का कोई चुनावी नतीजा नहीं निकला, क्योंकि ये पार्टियां एनसी या पीडीपी जैसी स्थापित पार्टियों को चुनौती देने में सक्षम मजबूत राजनीतिक ताकत के रूप में उभरने में नाकाम रहीं.

ये भी पढ़ें - JK News: एग्जिट पोल में तो डूबी नैया, क्या JK में BJP बना पाएगी सरकार? परदे के पीछे चल रहा ये गेम

जम्मू कश्मीर एग्जिट पोल में नेशनल कांफ्रेंस-कांग्रेस को बढ़त

सीवोटर एग्जिट पोल के अनुसार, कांग्रेस-नेशनल कॉन्फ्रेंस गठबंधन को 90 विधानसभा सीटों में से 40-48 सीटें जीतने का अनुमान है. जबकि भाजपा को 27-32 सीटें मिलने की उम्मीद है, महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व वाली पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) 6-12 सीटें जीत सकती है. अन्य पार्टियां और स्वतंत्र उम्मीदवार 6-11 सीटें ले सकते हैं. बाकी अलग-अलग टीवी चैनल और एजेंसियों के एग्जिट पोल में भी इससे मिलता-जुलता आकलन ही सामने आया है.

स्वर्णिम भारत न्यूज़ हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं.

मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Laptops | Up to 40% off

अगली खबर

Jaisalmer: पानी की टंकी के अंदर मिले दो लापता बच्चों के शव, परिजनों ने लगाया हत्या का आरोप

पीटीआई, जैसलमेर। राजस्थान के जैसलमेर में दो लापता बच्चों के शव उनके घर के पास खाली पड़े एक घर की पानी की टंकी के अंदर मिले। समाचार एजेंसी पीटीआई ने पुलिस के हवाले से रविवार को घटना की जानकारी दी।

जानकारी के अनुसार बाबर मगरा इलाके के निवासी

आपके पसंद का न्यूज

Subscribe US Now